राजस्थान के शेखावाटी के सीकर जिले में एक प्राचीन स्थान है, जिसे परमधाम खाटू कहा जाता है। यहां पर खाटू श्याम जी(Khatu Shyam Ji) बिराजमान हैं, और यह खाटू का श्याम मंदिर अत्यंत प्राचीन है। यहां हर वर्ष फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी से बारस तक एक मेला आयोजित होता है। श्याम बाबा के महिमा की प्रशंसा करने वाले भक्त न केवल राजस्थान और भारत में ही हैं, बल्कि दुनिया के हर कोने में मौजूद हैं।
बाबा खाटू श्री श्यामजी(Khatu Shyam Ji) श्रीकृष्ण के कलयुगी अवतार हैं। भीम के पुत्र घटोत्कच और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक थे, जिन्हें बाबा श्री खाटू श्याम जी(Khatu Shyam Ji) कहा जाता है। इनकी माता का नाम हिडिम्बा है।
बर्बरीक(Khatu Shyam Ji) ने ब्राह्मण रूप धारण किए श्रीकृष्ण से अपने वास्तविक रूप को प्रकट करने का अनुरोध किया। क्योंकि, वीर बर्बरीक को यह अनुभव था कि कोई ब्राह्मण इस तरह का दान कभी नहीं मांग सकता। इस पर श्रीकृष्ण अपने वास्तविक स्वरूप में प्रकट हुए और महाभारत युद्ध से पहले भूमिपूजन के लिए किसी क्षत्रिय के शीश की आहूति की बात कही। इस पर बर्बरीक ने अपने वचन के अनुसार अपना शीश दान स्वरूप करने का संकल्प लिया।
लेकिन बर्बरीक(Khatu Shyam Ji) ने श्री कृष्णा से महाभारत के युद्ध को देखने के लिए प्रार्थना की। बर्बरीक के दान किये हुए शीश को युद्धभूमि के समीप ही एक पहाड़ी पर सुशोभित किया गया। वहां से बर्बरीक ने महाभारत के युद्ध को पूर्णतया देखा। श्रीकृष्ण ने बर्बरीक(Khatu Shyam Ji) के इस बलिदान से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा कि वे कलयुग में श्याम नाम से पूजे जाएंगे। खाटू नगर में मंदिर स्थापित होने के कारण वे खाटू श्याम(Khatu Shyam Ji) कहलाए जाते हैं।
श्री खाटू वाले श्याम जी(Khatu Shyam Ji) की कहानी एकदम अद्भुत है। यहां आप देखेंगे कि खाटू श्याम जी(Khatu Shyam Ji) ने अपनी लीला से अपने शीश को खाटू श्याम मंदिर के पास स्थित श्याम कुंड से अवतरित किया। जय हो आपकी Khatu Shyam JI. खाटू नगरी (खाटू धाम) में एक गाय थी, जो रोज घास चरने के लिए जाती थी, और हर बार जमीन के एक भाग पर खड़ी हो जाती थी। उसके थनों से स्वतः ही दूध की धार बहने लगी, जैसे कोई जमीन के नीचे से उस गौ माता का दूध पी रहा हो। और गाय जब घर पर आती तो गौ मालिक को उसका दूध निकालने का प्रयास करने पर वह उसे प्राप्त नहीं होता था। यह सब बहुत दिनों तक चलता रहा। गौ मालिक को लगा कि कोई ऐसा जरूर होगा जो उसकी गाय का दूध निकाल लेता है।
एक दिन गौ मालिक ने उस गाय का पीछा किया। संध्या के समय जब उसने यह नजारा देखा, तो उसकी आँखें इस चमत्कार से चकरा गईं। गौ माता का दूध खुद-ब-खुद उसी धरा में समाने लगा। गौ मालिक हैरानी के साथ गांव के राजा के पास गया और पूरी कहानी सुनाई। राजा और उनकी सभा को इस बात पर ठोस विश्वास नही आया, लेकिन राजा को जानने की आकांक्षा थी कि आखिर मामला क्या है। राजा अपने कुछ मंत्रियों के साथ उस जमीन के भाग पर गए और उन्होंने देखा कि गौ मालिक सच बोल रहा है। उन्होंने अपने कुछ लोगों से जमीन का वही भाग खोदने के लिए कहा।
जब जमीन को खोदने लगा, उस धरा से एक आवाज आई, "धीरे धीरे खोदो, यहां मेरा शीश है।" उसी रात राजा को स्वप्न आया कि अब समय आ गया है शीश के अवतरित होने का। मैं महाभारत काल में भीम के पुत्र घटोत्कच और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक(Khatu Shyam Ji) था और मैंने भगवान श्रीकृष्ण को महाभारत युद्ध से पहले भूमिपूजन के लिए अपना शीश दान में दिया। फलस्वरूप, मुझे कलियुग में पूजे जाने का वरदान मिला है और खुदाई से मेरा शीश उसी धरा से मिलेगा जहा पे गाय आके खड़ी रहती थी और तुम्हें मेरा जल्द ही खाटू श्याम मंदिर बनाना होगा। सूरज निकलते ही जब राजा जागा, उसने अपने स्वप्न की याद को ध्यान में रखते हुए खुदाई को फिर से प्रारंभ करवा दिया, और तत्काल ही कलियुग के देव श्री श्याम का शीश उस धरा से अवतरित हुआ।
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